सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानकदेव थे। इनका जन्म पंजाब प्रांत के तलवंडी नामक स्थान में हुआ था। गुरुनानक के बाद सिखों के गुरु होने की परंपरा कायम रही। उनके बाद नौ गुरु और हुए। अंतिम गुरु गोविन्द सिंह थे। अपने बाद उन्होंने गुरुग्रंथ साहब को ही गुरु की पदवी दे दी। प्रत्येक सिख को पांच क- केश, कड़ा, कंधा, कटार व कच्छ धारण करना अनिवार्य है।
उपदेश व सिद्धान्त
ईश्वर एक है। वह अजर-अमर है। सभी ईश्वर की संतान हैं, इसलिए किसी से भी भेदभाव नहीं करना चाहिए। सिख धर्म मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता। यह धर्म अवतारों में भी विश्वास नहीं करता। प्रत्येक मनुष्य को श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। सिख धर्म में गुरु का स्थान सर्वोच्च है। सभी मनुष्यों को धर्म व सदाचार का पालन करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को अंधविश्वास व रूढ़िवादिता से बचना चाहिए। गुरुनानक की विचारधारा मानव मूल्यों एवं मानवीय गुणों पर आधारित है। सिख धर्म श्रेष्ठ कर्म करने पर बल देता है। श्रेष्ठ कर्म एकता के मूल बिन्दु होते हैं।
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