सांख्य में प्रकृति के विक्षोभ के बारे में बताया गया है। यह उत्पत्ति व प्रलय के रूप में होता है। उत्पत्ति में समस्त जगत मूल प्रकृति से उद्भूत होता है और प्रलय में लीन हो जाता है। समस्त परमाणु शक्तियों में लीन हो जाता है। इस प्रकार समस्त वस्तुएं अव्यक्त प्रकृति में लीन हो जाती हैं। अंत में एक निरपेक्ष नि:सीम व्यापक मूल कारण बच जाता है जो आत्मा के अतिरिक्त संसार की सभी वस्तुओं को अपने में अंतर्निहित कर लेता है। संपूर्ण अनात्मा (जड़) जगत के सूक्ष्म कारण को सांख्य में प्रकृति, प्रधान, अव्यक्त आदि कहा गया है। प्रकृति किसी कारण का कार्य नहीं है। यह शाश्वत है। यदि मूल प्रकृति का कारण खोजेंगे तो अनवस्था प्रसंग आ जाएगा। कार्य-कारण की श्रृंखला में कहीं न कहीं रुकना ही पड़ेगा। जहां जाकर हम रुक जाते हैं, उसी आदि कारण को सांख्य परा या मूल प्रकृति के नाम से पुकारता है। प्रकृति के तीन गुण हैं- सत, रज व तम। इन तीनों गुणों की साम्यवस्था का नाम प्रकृति है।
आचार्य शरदचंद्र मिश्र
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दिन तीन सौ पैसठ साल के,
ReplyDeleteयों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
काश! ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
काश! ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
प्रभावी लेखनी,
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो,
बधाई !!