ज्योतिष एक गहन एवं जटिल शास्त्र हैा इस शास्त्र में पारंगत होने के लिए सिद्धांत एवं होरा शास्त्र में प्रवीण होना पड़ता हैा शास्त्रों के अध्य्यन के पश्चात इष्ट सिद्धि भी हो तो उसके द्वारा किया भविष्य फल पूर्णत: घटित नहीं हो सकता, ज्योतिष शास्त्र में पंचांग का विशेष महत्व हैा तिथि, वार, करण के योग से विभिन्न प्रकार के योगों की निष्पत्ति होती है जैसे- कक्रच, ज्वालामुखी, विषकन्या आदिा योग कई प्रकार के बनते हैं, जैसे ग्रहों के योग से, पंचांग के योग से, भावों के योग से, दशा के योग से, इन योगों का फल मनुष्य के जीवन में किसी न किसी तरह घटित अवश्यक होता हैा दुर्योग से सुयोग और सुयोग से दुर्योग भंग भी हो जाता हैा
जैसे कुंडली में मालव्य योग विद्यमान हो और गुरु शनि किसी प्रकार से जुड़े हों तो मालव्य भंग हो जाता है। इसी प्रकार विष्कुम्भादि सत्ताइस योगों से भी शुभाशुभ योगों की हानि व वृद्धि होती है। जैसे जन्मपत्री में अमृत योग हो और विष्कुम्भादि योगों में प्रथम योग विष्कुम्भ् योग में जन्म हुआ हो तो यह विष्कुम्भ् योग अमृत योग के फल को नाश करके विष योग के फल को उत्पन्न करता है। इसी तरह यदि विषादि अशुभ योगों में बृहस्पति या शुक्र के कक्षा से व राशि से बनने वाले प्रीति, शिव, आयुष्मान् आदि योग हो तो विषादि योग के फलों को नाश करके शुभ फल प्रदान करता है। इस प्रकार ऊहापोह करके फलादेश करना ही बुद्धिमता है। चूंकि हमारे प्रायश:शास्त्र सूत्रात्मक हैं और ग्रंथों में जो फल वर्णन मिलता है, वह केवल एकदेशीय अथवा सम्भाव्य फल है तथा जैसे ग्रंथों में योग एवं फल लिखा रहता है, वैसा योग कुंडली में मिलना संभव नहीं है। अत: बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह फल कथन करे अन्यथा फल का तारतम्य न करके फलादेश करने वाला ज्योतिषी उपहास का पात्र बन जाता है। वस्तुत: सभी योगों की विशद व्याख्या करना व वर्णन करना मरुभूमि के बालू कण गिनने के समान है, फिर इस छोटे से लेख में हम यहां कुछ योगों की चर्चा करेंगे, जो केवल सूर्य चंद्र के योग से बनते हैं और पंचाङ्गों में मिलते हैं।
वस्तुत: विष्कुम्भादि योग से कुंडली में विद्यमान योग भंग हो जाता है, ऐसा उल्लेख प्राय: मूल ज्योतिष के ग्रंथों में उपलध नहीं है, फिर भी
यथामति शास्त्रों को ही आधार मानकर फल लिख रहा हूं। आशा है कि इससे ज्योतिष विद्या में अभिरुचि रखने वाले महानुभावों को योगों के फल
कथन में काफी सहायता मिलेगी।
विष्कुम्भ -विष्कुम्भ योग में जन्म लेने वाले जातक रूपवान्, भाग्यवान्, अनेक प्रकार अलंकारों से संपन्न, स्त्री, मित्रादि से सुखी, स्वतंत्र रहने वाले, शारीरिक सौन्दर्य की ओर झुकाव रखने वाले होते हैं। इस योग से विष योग को बल मिलता है और जातक अल्पायु होता है।
प्रीति -प्रीति योग में जन्म लेने वाला मनुष्य धनवान, दानी, प्रेम करने वाला, दूसरों के खुशी में आनंदित होने वाला, धर्मात्मा स्त्रियों में आसक्त, उत्साही, तत्व जिज्ञासु एवं स्वार्थी होता है। यह योग प्रेमयोग को विकसित करता है।
आयुष्मान् -आयुष्मान् योग में उत्पन्न होने वाला व्यक्ति द्रव्योपार्जन करने वाला, उद्यान बनाने वाला, दीर्घजीवी, युद्ध में विजयी, कवित्व शक्ति वाला होता है। यह योग अल्पायु योग को भंग करता है।
सौभाग्य -सौभाग्य योग में जन्म लेने वाला मनुष्य ज्ञानी, धनी, सत्य में रहने वाला, विवेकी, राज मंत्री, सभी कार्य में कुशल, स्त्रीप्रिय होता है। यह योग राजयोग को पुष्ट करता है।
शोभन -शोभन योग में उत्पन्न जातक के पुत्र एवं स्त्री अनेक होते हैं। उत्तम बुद्धि वाला, सर्वदा सत्कर्म में तत्पर रहने वाला होता है और युद्ध भीरू नहीं होता है। यह योग अखंड साम्राज्य योग को सुस्थिर करता है।
अतिगण्ड -अतिगण्ड में जन्म लेने वाला व्यक्ति अहंकारी, अल्पायु, भाग्यहीन, क्रोधी, धूर्त, कलही, कण्ड रोड से पीड़ित, बड़ी ठोडी वाला, पाखंडी, मातृहन्ता होता है। अतिगण्ड में जन्म लेने वालों का यदि जन्म गण्ड नक्षत्र में हो तो ऐसा व्यक्ति कुलहन्ता होता है और इस योग से बालारिष्ट योग बनता है।
सुकर्मा -सुकर्मा योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कला में विपुण अथवा कलाशास्त्री होता है एवं उत्साही, उपकारी, सत्मार्गी, रोगी एवं भोगी होता है।
धृति -धृति योग में उत्पन्न जातक विद्यावान, धैर्यशाली, अनेक देशों में कीर्तिमान फैलाने वाला, सुखी एवं गुणवान होता है।
शूल -शूल योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति दरिद्र, रोगी, कुकर्मी, कदाचित शूलरोग से पीड़ित होने वाला होता है। कुंडली में भी शूल योग विद्यमान हो तो व्यक्ति उदरशूली होता है। अर्थात् ऐसे मनुष्य के पेट में बहुत दर्द होता है।
गण्ड योग- इस योग में जन्म लेने वाले जातक का सिर बहुत बड़ा होता है। शरीर पतला और गालक के रोग से पीड़ित होता है। कठोर, पराये धन का लालची, बहुत भोगी और दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
वृद्धि योग- वृद्धि योग में उत्पन्न जातक संग्रह करने वाला चतुर व्यापारी, भाग्यवान, सुन्दर स्वरूप वाला, शक्तिशाली तथा सभी को प्रिय मानने वाला होता है। इस जातक की कुण्डली में अल्पायु योग हो तो वह भंग हो जाता है।
ध्रुव- इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य शक्तिशाली, निश्चित बुद्धि वाला, उसके घर में लक्ष्मी का स्थिर निवास और मुख में साक्षात सरस्वती विराजमान रहने से अखंड यश को प्राप्त करता है। इस योग के प्रभाव से मनुष्य दीर्घजीवी बनता है।
व्याघात -व्याघात योग में जन्म लेने वाला व्यति तथ्यों को जानने वाला, मनुष्यों में पूजित, कर्मकर्ताओं में प्रधान होता है। किंतु कभी-कभी मनुष्य क्रूर कर्म करने वाला, निंदक, मिथ्याभाषी एवं हिंसक प्रवृत्ति का भी होता है।
हर्षण -हर्षण योग का जातक सुंदर वदन, वाक शास्त्रयासी, रक्तिम वर्ण, अलंकार प्रिय, शत्रु नाशक, राजप्रिय, भाग्यवान, विद्या में प्रवीण, सदैव आयुध धारण करने वाला होता है।
बज्र- इस योग में जन्म लेने वाला जातक बुद्धिमान, उत्तम वंधुगुणी, महाबली, सत्य बोलने वाला, बहुमूल्य आभूषणों को धारण करने वाला, बज्र के समान सुदृढ़ व सभी अस्त्र विद्याओं में निपुण, धन-धान्य, तत्व ज्ञान से संपन्न होता है। बहुत विक्रमी भी होता है।
सिद्ध- इस योग में जन्म लेने वाला उदार चित्त, सुन्दर, धर्मशास्त्र को मानने वाला, सुन्दर, दाता, भोक्ता, रोगी एवं तत्व जिज्ञासु होता है।
व्यतिपात- इस योग में जन्म लेने वाला जातक माता-पिता के वचनों को मानने वाला, गुप्तांग रोगी, कठोर हृदय वाला होता है। दूसरों के कष्ट में बाधा डालने वाला, बड़े कष्ट से जीवित रह पाता है। भाग्य साथ देता है व श्रेष्ठ मनुष्य होता है।
वरीयान- वरीयान योग का जातक अन्न, भवनादि को भोगने वाला, नम्रतायुक्त होता है। सुकर्म करने वाला, कला, संगीत व नृत्य में दक्ष होता है।
परिघ- इस योग में जन्म लेने वाला जातक झूठी गवाही देने वाला, अनेकों की जमानत लेने वाला अपने द्वारा किये गए कर्म को स्पष्ट करने वाला, क्षमारहित चतुर, कम खाने वाला, शत्रुओं को पराजित करने वाला, कुल की उन्नति करने वाला, श्रेष्ठ कवि, वाचाल भी होता है। यह योग दंड योग को भंग करके खंड योग तथा चक्रयोग को पुष्ट करता है।
शिव -शिव योग में उत्पन्न मनुष्य मंत्र शास्त्र का ज्ञाता, इंद्रियों को वश में रखने वाला सुंदर देहवाला भगवान शिव की कृपा से सुखी होता है और सभी प्रकार का कल्याणों का पात्र होता है।
सिद्धि -सिद्धि योग में जन्म लेने वाला मनुष्य जितेंद्रिय, सत्यवक्ता, अति गौरवर्ण, सब कार्यों में कुशल, अनेक कार्य करने में सफल, मंत्र सिद्धि प्राप्त करने वाला, गुणी पत्नी प्राप्त करने वाला और ऐश्वर्यशाली होता है।
साध्य -साध्य योग में जन्म लेने वाले पुरुष नम्र, चतुर होते है। हंसमुख, कार्यकुशल, वैरी पर विजय प्राप्त करने वाला, मंत्रविद्या के प्रभाव से इष्ट सिद्धि प्राप्तम करने वाला, दीर्घसूत्री सुखी, प्रसिद्ध तथा सर्वमान्य होता हैा
शुभ- शुभ योग में जन्म लेने वाला पुरुष शुभ कर्मों से युक्त, धनवान, ज्ञान-विज्ञान संपन्न, दानी, ब्राह्मण पूजक, सुंदर वचन बोलने वाला, शुभ लक्षणों से संपन्न होता है।
शूल -शूल योग का जातक कवि, प्रतापी, शूरवीर कला के तत्व को जानने वाला सभी का प्रिय, अत्यन्त बली, आदर और स्वच्छ वस्त्र धारण करने की अभिलाषा रखने वाला होता है।
ब्रह्म -ब्रह्म योग का जातक विद्याभ्यास का अत्यन्त प्रेमी, सत्य आचरण में रहने वाला, आदरणीय, शान्त, उदार सुकर्मी, वेदाभ्यासी, नित्य ब्रह्म तत्व की खोज में रहने वाला होता है।
ऐन्द्र -ऐन्द्र योग का बालक तेजस्वी, कफरोगी, अपने कुल में श्रेष्ठ, सुखी, गुणवान एवं राजा के समान होते हुए भी अल्पायु को प्राप्त हो जाता है।
वैधृति -वैधृति योग का जातक निरत्साही, भूखा रहने वाला, अन्य व्यतियों का प्रेमी, किंतु अन्य व्यतियों में प्रेम न रखने वाला, चंचल चित्त वाला, धर्म एवं अपने संस्कारों को न मानने वाला, मलीन हृदय, दुष्ट प्रकृति का होता है। यह योग रोगयोग का पोषक होता है।
शिवादि शुभ योग से कुण्डली में विद्यमान रज्जु आदि अशुभ योगों का फल काफी हद तक समाप्त हो जाता है तथा कूर्मादि योगों के फल में वृद्धि हो जाती है।
विष्कुम्भ , अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, व्यतिपात, परिघ, वैधृति आदि को अशुभ माना जाता है। इन योगों की शांति शास्त्रोक्त विधि से कराना चाहिए अथवा स्वर्ण, गौ और तिलपात्र शुभवार, शुभ नक्षत्र एवं शुभ तिथियों में संकल्प पूर्वक दान करने से अरिष्ट योगों का अशुभ फल समाप्त हो जाता है।
नोट- इस वेबसाइट की अधिकांश फोटो गुगल सर्च से ली गई है, यदि किसी फोटो पर किसी को आपत्ति है तो सूचित करें, वह फोटो हटा दी जाएगीा
जैसे कुंडली में मालव्य योग विद्यमान हो और गुरु शनि किसी प्रकार से जुड़े हों तो मालव्य भंग हो जाता है। इसी प्रकार विष्कुम्भादि सत्ताइस योगों से भी शुभाशुभ योगों की हानि व वृद्धि होती है। जैसे जन्मपत्री में अमृत योग हो और विष्कुम्भादि योगों में प्रथम योग विष्कुम्भ् योग में जन्म हुआ हो तो यह विष्कुम्भ् योग अमृत योग के फल को नाश करके विष योग के फल को उत्पन्न करता है। इसी तरह यदि विषादि अशुभ योगों में बृहस्पति या शुक्र के कक्षा से व राशि से बनने वाले प्रीति, शिव, आयुष्मान् आदि योग हो तो विषादि योग के फलों को नाश करके शुभ फल प्रदान करता है। इस प्रकार ऊहापोह करके फलादेश करना ही बुद्धिमता है। चूंकि हमारे प्रायश:शास्त्र सूत्रात्मक हैं और ग्रंथों में जो फल वर्णन मिलता है, वह केवल एकदेशीय अथवा सम्भाव्य फल है तथा जैसे ग्रंथों में योग एवं फल लिखा रहता है, वैसा योग कुंडली में मिलना संभव नहीं है। अत: बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह फल कथन करे अन्यथा फल का तारतम्य न करके फलादेश करने वाला ज्योतिषी उपहास का पात्र बन जाता है। वस्तुत: सभी योगों की विशद व्याख्या करना व वर्णन करना मरुभूमि के बालू कण गिनने के समान है, फिर इस छोटे से लेख में हम यहां कुछ योगों की चर्चा करेंगे, जो केवल सूर्य चंद्र के योग से बनते हैं और पंचाङ्गों में मिलते हैं।
वस्तुत: विष्कुम्भादि योग से कुंडली में विद्यमान योग भंग हो जाता है, ऐसा उल्लेख प्राय: मूल ज्योतिष के ग्रंथों में उपलध नहीं है, फिर भी
यथामति शास्त्रों को ही आधार मानकर फल लिख रहा हूं। आशा है कि इससे ज्योतिष विद्या में अभिरुचि रखने वाले महानुभावों को योगों के फल
कथन में काफी सहायता मिलेगी।
विष्कुम्भ -विष्कुम्भ योग में जन्म लेने वाले जातक रूपवान्, भाग्यवान्, अनेक प्रकार अलंकारों से संपन्न, स्त्री, मित्रादि से सुखी, स्वतंत्र रहने वाले, शारीरिक सौन्दर्य की ओर झुकाव रखने वाले होते हैं। इस योग से विष योग को बल मिलता है और जातक अल्पायु होता है।
प्रीति -प्रीति योग में जन्म लेने वाला मनुष्य धनवान, दानी, प्रेम करने वाला, दूसरों के खुशी में आनंदित होने वाला, धर्मात्मा स्त्रियों में आसक्त, उत्साही, तत्व जिज्ञासु एवं स्वार्थी होता है। यह योग प्रेमयोग को विकसित करता है।
आयुष्मान् -आयुष्मान् योग में उत्पन्न होने वाला व्यक्ति द्रव्योपार्जन करने वाला, उद्यान बनाने वाला, दीर्घजीवी, युद्ध में विजयी, कवित्व शक्ति वाला होता है। यह योग अल्पायु योग को भंग करता है।
सौभाग्य -सौभाग्य योग में जन्म लेने वाला मनुष्य ज्ञानी, धनी, सत्य में रहने वाला, विवेकी, राज मंत्री, सभी कार्य में कुशल, स्त्रीप्रिय होता है। यह योग राजयोग को पुष्ट करता है।
शोभन -शोभन योग में उत्पन्न जातक के पुत्र एवं स्त्री अनेक होते हैं। उत्तम बुद्धि वाला, सर्वदा सत्कर्म में तत्पर रहने वाला होता है और युद्ध भीरू नहीं होता है। यह योग अखंड साम्राज्य योग को सुस्थिर करता है।
अतिगण्ड -अतिगण्ड में जन्म लेने वाला व्यक्ति अहंकारी, अल्पायु, भाग्यहीन, क्रोधी, धूर्त, कलही, कण्ड रोड से पीड़ित, बड़ी ठोडी वाला, पाखंडी, मातृहन्ता होता है। अतिगण्ड में जन्म लेने वालों का यदि जन्म गण्ड नक्षत्र में हो तो ऐसा व्यक्ति कुलहन्ता होता है और इस योग से बालारिष्ट योग बनता है।
सुकर्मा -सुकर्मा योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कला में विपुण अथवा कलाशास्त्री होता है एवं उत्साही, उपकारी, सत्मार्गी, रोगी एवं भोगी होता है।
धृति -धृति योग में उत्पन्न जातक विद्यावान, धैर्यशाली, अनेक देशों में कीर्तिमान फैलाने वाला, सुखी एवं गुणवान होता है।
शूल -शूल योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति दरिद्र, रोगी, कुकर्मी, कदाचित शूलरोग से पीड़ित होने वाला होता है। कुंडली में भी शूल योग विद्यमान हो तो व्यक्ति उदरशूली होता है। अर्थात् ऐसे मनुष्य के पेट में बहुत दर्द होता है।
गण्ड योग- इस योग में जन्म लेने वाले जातक का सिर बहुत बड़ा होता है। शरीर पतला और गालक के रोग से पीड़ित होता है। कठोर, पराये धन का लालची, बहुत भोगी और दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
वृद्धि योग- वृद्धि योग में उत्पन्न जातक संग्रह करने वाला चतुर व्यापारी, भाग्यवान, सुन्दर स्वरूप वाला, शक्तिशाली तथा सभी को प्रिय मानने वाला होता है। इस जातक की कुण्डली में अल्पायु योग हो तो वह भंग हो जाता है।
ध्रुव- इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य शक्तिशाली, निश्चित बुद्धि वाला, उसके घर में लक्ष्मी का स्थिर निवास और मुख में साक्षात सरस्वती विराजमान रहने से अखंड यश को प्राप्त करता है। इस योग के प्रभाव से मनुष्य दीर्घजीवी बनता है।
व्याघात -व्याघात योग में जन्म लेने वाला व्यति तथ्यों को जानने वाला, मनुष्यों में पूजित, कर्मकर्ताओं में प्रधान होता है। किंतु कभी-कभी मनुष्य क्रूर कर्म करने वाला, निंदक, मिथ्याभाषी एवं हिंसक प्रवृत्ति का भी होता है।
हर्षण -हर्षण योग का जातक सुंदर वदन, वाक शास्त्रयासी, रक्तिम वर्ण, अलंकार प्रिय, शत्रु नाशक, राजप्रिय, भाग्यवान, विद्या में प्रवीण, सदैव आयुध धारण करने वाला होता है।
बज्र- इस योग में जन्म लेने वाला जातक बुद्धिमान, उत्तम वंधुगुणी, महाबली, सत्य बोलने वाला, बहुमूल्य आभूषणों को धारण करने वाला, बज्र के समान सुदृढ़ व सभी अस्त्र विद्याओं में निपुण, धन-धान्य, तत्व ज्ञान से संपन्न होता है। बहुत विक्रमी भी होता है।
सिद्ध- इस योग में जन्म लेने वाला उदार चित्त, सुन्दर, धर्मशास्त्र को मानने वाला, सुन्दर, दाता, भोक्ता, रोगी एवं तत्व जिज्ञासु होता है।
व्यतिपात- इस योग में जन्म लेने वाला जातक माता-पिता के वचनों को मानने वाला, गुप्तांग रोगी, कठोर हृदय वाला होता है। दूसरों के कष्ट में बाधा डालने वाला, बड़े कष्ट से जीवित रह पाता है। भाग्य साथ देता है व श्रेष्ठ मनुष्य होता है।
वरीयान- वरीयान योग का जातक अन्न, भवनादि को भोगने वाला, नम्रतायुक्त होता है। सुकर्म करने वाला, कला, संगीत व नृत्य में दक्ष होता है।
परिघ- इस योग में जन्म लेने वाला जातक झूठी गवाही देने वाला, अनेकों की जमानत लेने वाला अपने द्वारा किये गए कर्म को स्पष्ट करने वाला, क्षमारहित चतुर, कम खाने वाला, शत्रुओं को पराजित करने वाला, कुल की उन्नति करने वाला, श्रेष्ठ कवि, वाचाल भी होता है। यह योग दंड योग को भंग करके खंड योग तथा चक्रयोग को पुष्ट करता है।
शिव -शिव योग में उत्पन्न मनुष्य मंत्र शास्त्र का ज्ञाता, इंद्रियों को वश में रखने वाला सुंदर देहवाला भगवान शिव की कृपा से सुखी होता है और सभी प्रकार का कल्याणों का पात्र होता है।
सिद्धि -सिद्धि योग में जन्म लेने वाला मनुष्य जितेंद्रिय, सत्यवक्ता, अति गौरवर्ण, सब कार्यों में कुशल, अनेक कार्य करने में सफल, मंत्र सिद्धि प्राप्त करने वाला, गुणी पत्नी प्राप्त करने वाला और ऐश्वर्यशाली होता है।
साध्य -साध्य योग में जन्म लेने वाले पुरुष नम्र, चतुर होते है। हंसमुख, कार्यकुशल, वैरी पर विजय प्राप्त करने वाला, मंत्रविद्या के प्रभाव से इष्ट सिद्धि प्राप्तम करने वाला, दीर्घसूत्री सुखी, प्रसिद्ध तथा सर्वमान्य होता हैा
शुभ- शुभ योग में जन्म लेने वाला पुरुष शुभ कर्मों से युक्त, धनवान, ज्ञान-विज्ञान संपन्न, दानी, ब्राह्मण पूजक, सुंदर वचन बोलने वाला, शुभ लक्षणों से संपन्न होता है।
शूल -शूल योग का जातक कवि, प्रतापी, शूरवीर कला के तत्व को जानने वाला सभी का प्रिय, अत्यन्त बली, आदर और स्वच्छ वस्त्र धारण करने की अभिलाषा रखने वाला होता है।
ब्रह्म -ब्रह्म योग का जातक विद्याभ्यास का अत्यन्त प्रेमी, सत्य आचरण में रहने वाला, आदरणीय, शान्त, उदार सुकर्मी, वेदाभ्यासी, नित्य ब्रह्म तत्व की खोज में रहने वाला होता है।
ऐन्द्र -ऐन्द्र योग का बालक तेजस्वी, कफरोगी, अपने कुल में श्रेष्ठ, सुखी, गुणवान एवं राजा के समान होते हुए भी अल्पायु को प्राप्त हो जाता है।
वैधृति -वैधृति योग का जातक निरत्साही, भूखा रहने वाला, अन्य व्यतियों का प्रेमी, किंतु अन्य व्यतियों में प्रेम न रखने वाला, चंचल चित्त वाला, धर्म एवं अपने संस्कारों को न मानने वाला, मलीन हृदय, दुष्ट प्रकृति का होता है। यह योग रोगयोग का पोषक होता है।
शिवादि शुभ योग से कुण्डली में विद्यमान रज्जु आदि अशुभ योगों का फल काफी हद तक समाप्त हो जाता है तथा कूर्मादि योगों के फल में वृद्धि हो जाती है।
विष्कुम्भ , अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, व्यतिपात, परिघ, वैधृति आदि को अशुभ माना जाता है। इन योगों की शांति शास्त्रोक्त विधि से कराना चाहिए अथवा स्वर्ण, गौ और तिलपात्र शुभवार, शुभ नक्षत्र एवं शुभ तिथियों में संकल्प पूर्वक दान करने से अरिष्ट योगों का अशुभ फल समाप्त हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्ततम बडाल
डोलेश्वर ज्योतिष परामर्श केंद्र, काठमांडू, नेपाल
नोट- इस वेबसाइट की अधिकांश फोटो गुगल सर्च से ली गई है, यदि किसी फोटो पर किसी को आपत्ति है तो सूचित करें, वह फोटो हटा दी जाएगीा
Dwivedi ji, ek baar phir ek achha topic. Lekin main ek feedback dena chahunga : Kripya apne post mein space ka istemaal karein...isse pura post dekhne aur padhne mein aur bhi aakarshak dikhega... :) Baki aapke likhne mein koi saani nahi... :)
ReplyDeletethanks jitendra. I try to flow it
DeleteJust wanted to ask Sir, if these characters apply equally to girls? Is it gender specific?
ReplyDeleteयह दोनों के िलए होता है, केवल लड़के या लड़की के िलए नहीं, आपने पोस्ट पढ़ा, इसके िलए आभारी हूं
DeleteThank you for clarifying.
ReplyDeleteMe vytipat.angarsk yog.shukr-rahu vyay bhavme se pareshan .muje puri madad kate.sant mile.kripa kate.shri
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