गोविंद गोशाला में रविवार को मीरा का बावरापन अपनी गरिमा में उतर आया था। मीरा के साथ बह रही भक्ति की मंदाकिनी में श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। इस बीच कथाव्यास राधाकृष्ण महाराज के स्वर से फूटे भजनों के बोल एक नए लोक का सृजन कर रहे थे देश-दुनिया से पूरी तरह बेखबर भक्त भगवान के चरणों में अपनी श्रद्धा निवेदित कर रहे थे। अवसर था त्रिदिवसीय मीरा भक्ति महोत्सव का प्रथम दिन का। आयोजन गोवत्स सेवा संस्थान ने किया है।
जोधपुर से आए कथाव्यास संत राधाकृष्ण महाराज ने मीरा के पूर्व जन्म पर प्रकाश डालकर यह बताने की कोशिश की भगवत संबंधी मनोरथ पूरे होते ही हैं। उन्होंने कहा कि भगवत संबंधी मनोरथ जब भी मन में उठे, उसे दबाना नहीं चाहिए। जब भी भगवान से संबंधित कोई इच्छा जगे तो उसे बढ़ाते जाइए। मीरा ने द्वापर युग में भगवत संबंधी मनोरथ किया था, जब वह माधवी नाम की गोपी थी। उस समय उसका मनोरथ पूरा नहीं हो पाया। वही माधवी कलयुग में मीरा नाम से पैदा हुई और ठाकुरजी के परमधाम में स्थान प्राप्त किया।
मीरा के पूर्व जन्म की कथा के बाद उन्होंने मीरा के साथ भक्ति की यात्रा शुरू की। मीरा की भक्ति में बहुत से अवरोधों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिकूलता ही भक्ति का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है। इस दौरान उन्होंने अनेक गोपी गीतों व होली गीतों की प्रस्तुति कर माहौल में प्रेम का रस बरसाया। इस रस में श्रद्धालु भीगते रहे।
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