इस महीने में हुये दोजख के सब दरवाजें बंद
इस महीने में खुले जन्नत के दरवाजे तमाम
पाक रमजान का महीना है। बरकतों का नूर है। चारों तरफ छाया सुरूर है। इस नूर से सभी मजहब के लोग फैजयाब हो रहे है। इस उमस भरी गर्मी में सिर्फ मुसलमान ही सब्र का कड़ा इम्तेहान नहीं दे रहे है। महानगर में कुछ हिन्दू भाई भी मुसलमान के इस पवित्र महीने में रोजेदारों की जमात में शामिल हो रहे है। जी हां आपको सुनकर थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा। लेकिन पूरी अकीदत के साथ रोजा रह रहे 47 वर्षीय खिलौना व्यवसायी लालबाबू ऐसी एक बेमिसाल नजीर हैं। शांत चित्त स्वभाव लालबाबू पूरी अकीदत के साथ पिछले 29 सालों से लगातार रोजे रखते है। रमजान के रोजे पर विश्वास इतना ज्यादा है कि विधिवत सूर्योदय पूर्व में सेहरी और सूर्योदय पश्चात् अफ्तार के अतिरिक्त रोजे में दी जाने वाली सदका फित्रा का विधिवत पालन करते है। रमजान के दस रोजे रखते है। इनकी पत्नी गीतांजलि भी इनके साथ कुछ रोजे रखती है।
लालबाबू ने अपने जीवन से जुड़े इस खास पहलू को साझा करते हुए बताया कि 1952 के जमाने में उनके पिता स्व. गंगा प्रसाद ने यह मन्नत मांगी थी कि यदि उनका कोई व्यवसाय या दुकान हो जाए तो वह अल्लाह तआला की रजा के लिए रोजे रखेंगे। बस फिर क्या था मानों जैसे चमत्कार हुआ हो। जुबान से निकली फरियाद खुदा ने कुबूल की। उन्हें घंटाघर पर एक अच्छी दुकान मिली। जिसमें उन्होंने खिलौनों का व्यवसाय शुरू किया। रब की रहमत से यह कारोबार खूब फला। आज इसी दुकान पर लालबाबू और उनके पुत्र प्रिंस दुकानदारी करते है। गंगा प्रसाद की मृत्यु के बाद रोजा रखने की इस परम्परा को उनके पुत्र लालबाबू बाखूबी अंजाम दे रहे है। रोजे के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में इनको खूब पता है जैसे अपनी सभी इन्द्रियों पर काबू रखना है। यह पूछे जाने पर कि आस पास के लोग आप के रोजा रहने पर क्या कहते है तो उन्होंने कहां एक जमाने से सब जानते है कि हम रोजा रखते है और इसमें उनके परिवार का पूरा सहयोग रहता है। रंग बिरंगे चाइनीज और भारतीय खिलौनों से सजी इस दुकान पर बैठे लालबाबू के चेहरे पर एक कृत्ज्ञता भाव वाली मुस्कान अनायास ही आ जाती है। जब उनसे पूछा जाता है कि रोजा रखने पर उनके जीवन में क्या बदलाव आया। वह एक शब्द में जवाब देते है बरकत होती है। उनके अगल बगल उसी बाजार में दुकान करने वाले भी इस बात की तस्दीक करते है कि लालबाबू और उनके पिता एक लम्बे समय से रोजादार रहें। बगल में गुलेल की दुकान करने वाले शमशाद आलम बताते हैं कि लालबाबू के पिता के अतिरिक्त उनकी बहन भी रोजा रखती है। लालबाबू का पुत्र भी रोजा रखने की ख्वाहिश रखता है। लालबाबू का कार्य लोगों के लिए नयी आशा दे रहा है। समाज में भाईचारगी का पैगाम दे रहा है। उन लोगों के मुहं पर करार तमाचा है जो लोग धर्म और जाति की राजनीति कर इसांनियत को बांटते है।
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
farahan ahamad
Keywords: islam
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that's India where Muslims excel in Gita quiz and Hindu keep Roza , nice
ReplyDeleteYA ALLAH MERI BHI DUA KABOOL KR
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