यम योग का प्रथम अंग है। इसके निम्नलिखित अंग हैं।
1- अहिंसा- किसी जीव को किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचाना।
2- सत्य- अर्थात किसी से किसी तरह का झूठ न बोलना।
3- अस्तेय- अर्थात चोरी न करना।
4- ब्रह्म्चर्य- अर्थात विषय वासनाओं की ओर न जाना।
5- अपरिग्रह- अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह या ग्रहण न करना।
योग साधना करने वालों के लिए इनकी साधना आवश्यक है। यही मन को सबल बनाते हैं ताकि मन विकारों पर विजय प्राप्त कर सके। जब तक मनुष्य का मन पाप वासनाओं से भरा और चंचल रहता है तब तक वह किसी विषय पर चित्त एकत्र नहीं कर सकता है। इसलिए योग के साधक को सभी आसक्तियों व कुप्रवृत्तियों से विरत होना आवश्यक है।
-आचार्य शरदचंद्र मिश्र
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यम
प्रेषक:
Gajadhar Dwivedi
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