5 अक्टूबर दिन सोमवार को सूर्योदय 6 बजकर 5 मिनट पर व अष्टमी तिथि का मान सायंकाल 7 बजकर 16 मिनट तक है। सूर्यास्त 5 बजकर 51 मिनट पर है। अष्टमी तिथि प्रदोष काल में है। इसलिए प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को स्वीकार करते हुए जीवत्पुत्रिका व्रत का सर्वोत्तम दिन 5 अक्टूबर ही है।
पूजन विधि- पवित्र होकर व्रती महिला प्रदोषकाल में गाय के गोबर से भूमि को उपलिप्त कर छोटा सा तालाब जमीन पर खोदकर बनाएं। तालाब के समीप एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली व लाल रुई से उसे अलंकृत करें और दीप, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। मिट्टी व गाय के गोबर में चिल्ली या मादा चील और सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से भूषित करें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पात्र में पूजन करना चाहिए। इसके बाद व्रत महात्म्य की कथा श्रवण करना चाहिए।
आचार्य शरदचंद्र मिश्र
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